Sunday, March 27, 2011

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जब प्यार.....एक दुखद अतीत बन जाता है तो अतीत के वे यादगार पल अक्सर याद आते है.......
प्यार का कोई ओर और छोर नहीं होता .... कोई तय राह नहीं होती ...प्यार  की कोई थाह नहीं .... कोई साहिल नहीं...और कोई मंजिल नहीं होती ..... प्यार का कोई अंत नहीं..ये तो अनंत है...सतत...अनवरत.... निश्चल .... पल.... पल प्रवाहित ..! प्यार.... प्यार..... प्यार....
जब जान  से भी प्यारा प्रिय दिल के आस पास हो ...तो प्यार सुखद लगता है....और खिलते जाते गुलमोहर..अमलतास..और साथ ही टेसू के रंग बिरंगे महकते हुए फूल .... वो समय ऐसा होता है जिसमे हर पल जीत ही जीत नजर आती है.... और जब मन का मीत दिल से दूर बहुत दूर चला जाता है.... तो दर्पण टूट जाते है ...चारों ओर फैली  किरचें लहूलुहान करती है...और  वही प्यार पीड़ा देने लगता है.....

जीवन का एक लंबा पड़ाव गुजर गया ...अब आकर खोने ओर पाने के ...मायने समझाने लगे हो ....इतने दिन कहाँ थे ?सवालों के ढेरों ढेर पुलिंदे...खोल के तुम्हारे सामने बिखरा दिए है ...बताओ कहाँ थे ?जब ..जब रोये कोई कंधा सहारे के लिए नहीं था..... रातों को डर..डर कर तकिये को भींचा ,...तब भी तुम नहीं थे.... आंसुओं में  कितनी रातें सिसक सिसक...गुजारीं तब भी तुम नहीं थे ..सारे रास्तों पर अकेले बंजारों की तरह डोलते रहे ....तुम्हे पुकारते रहे ...पर तुम तो अपनी दुनिया में  खोये थे ...और  मेरी  आवाज़ तम्हे छु ना सकी .... टकरा कर  लौट आयी ....अब कहते हो साथ चलो...ओर कैसा  साथ देने  को कहते हो जिसमे हमेशा ...खुद को हमसे दूर ले जाने के बात करते हो .....बस अब बस भी करो ....अब मान भी जाओ ओर खूब जियो मेरे लिए जियो... मर मर ...कर नहीं मिट ..मिट कर जियो ......हमें जियो हमें चाहो ...हमें पाओ...हमेशा पास रहो ....ओर हमें जिन्दा रहने के रोज नए सपने दो.... मेरे सपनों में रंग बन कर छा जाओ....  क्या  ऐसा नहीं कर सकते हो ?हम जानते है आप  सब कर सकते हो ..

वो  छटपटाहटो...के दौर..... और अनगिनत ...दुविधाओं से घिरा मन ....दुखों और आंसुओं के उगते अनगिनत जंगल ......पर साथ कोई नहीं .....कहने को तो चारों ओर जमघट ........पर मन का हर कोना अधूरा.........हर खुशी फीकी ..........!
सालों गुजर गए साथ रहते ...पर क्या साथ है ..?  कभी हाथ में हाथ लेकर किये गए......... पुराने वादों की किताबों को पलट कर नहीं देखा ...परत दर परत...धूल जमते से मन हो गए ....! क्यों हमने....अपने- अपने मन के  दरवाजों को सख्ती से बंद कर रखा है .....! कितने रास्ते बनाये...तुम तक पहुँचने के ....सब कुछ छोड़ कर .... पूरे मन के साथ तुम्हारे पास आये थे ....पर क्या तुम पूरे मन से मेरे साथ थे ....? नहीं......अगर होते तो दर्द के निशान दीवारों पर इतने गहरे ना दिखते ....रिश्ते.....बबूल के काटों की तरह दंश देते हुए और लहूलुहान करते हुए नहीं दीखते ...!कुछ बंधन ..... अबूझे ही रह जाते है ..... छोड़े हुए मोड ....सिर्फ इन्तजार करते ही रह जाते है ...   नहीं जान सके आजतक क्या चाहा था जिंदगी से और क्या मिला .......बहुत सारे प्रश्न है ....और जवाब कहीं नहीं .....तुम जो कभी इन प्रश्नों से गुजरना ...तो एक पल ...ठहरना  ....और.........सुनना  इन के कोलाहल को ...इनमे दबी चीखें ....और सिसकियाँ ...तुम्हें जरूर सुनायी देंगी..................