Sunday, June 12, 2011



और.....एक और दिन था  डूबता हुआ सा ..........!

यादों की एक किताब को सरहाने रखकर ...ना जाने सारा दिन

क्या-क्या बुनते...... उधेड़ते रहे......!   

हाथों पर तुमने उँगलियों से जो इबारत लिखी  .,...उसके निशान 

पक्के हो चले है ....बारिश की बूंदो में भीगने से ....रंग और निखर 

आया है .......

ढुलकते जाते हो कभी गालों पर आंसूं बन कर और कभी...होठों पे 

ठहरती सी बातों....का एक कारवां बन जाते हो ...................

खामोशियों से भी ज्यादा था वीरान ये दिन.................! सारे गीत 

.....कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !................बेबस सी हवा में 

तैरती .... सिसकती यादें.......थीं ....... और.....एक और दिन 

था  डूबता हुआ सा ..........!

6 Comments:

At July 11, 2011 at 10:12 AM , Blogger मो. कमरूद्दीन शेख ( QAMAR JAUNPURI ) said...

हाथों पर तुमने उँगलियों से जो इबारत लिखी .,...उसके निशान

पक्के हो चले है ....बारिश की बूंदो में भीगने से ....रंग और निखर

आया है .......

भावों की सहज और सशक्त अभिव्यक्ति। बहुत बहुत बधाई।

 
At September 1, 2011 at 7:17 AM , Blogger रश्मि प्रभा... said...

her ibaarat dil per utar gai...

 
At September 1, 2011 at 10:45 PM , Blogger vibha said...

This comment has been removed by the author.

 
At September 24, 2011 at 12:48 AM , Blogger vibha said...

thanks rashmi ji

 
At November 1, 2011 at 10:47 PM , Blogger सदा said...

गहरे उतरते शब्‍द ।

 
At November 2, 2011 at 4:20 AM , Blogger आनंद said...

सारे गीत कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !
बेबस सी हवा में तैरती ,सिसकती यादें थीं
और.....
एक और दिन था
डूबता हुआ सा ..........!

बहुत ही गहरी रचना विभा जी! बहुत ही शांत दर्द चीखता हुआ नहीं मगर चीरता हुआ |

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home