वो छटपटाहटो...के दौर..... और अनगिनत ...दुविधाओं से घिरा मन ....दुखों और आंसुओं के उगते अनगिनत जंगल ......पर साथ कोई नहीं .....कहने को तो चारों ओर जमघट ........पर मन का हर कोना अधूरा.........हर खुशी फीकी ..........!
सालों गुजर गए साथ रहते ...पर क्या साथ है ..? कभी हाथ में हाथ लेकर किये गए......... पुराने वादों की किताबों को पलट कर नहीं देखा ...परत दर परत...धूल जमते से मन हो गए ....! क्यों हमने....अपने- अपने मन के दरवाजों को सख्ती से बंद कर रखा है .....! कितने रास्ते बनाये...तुम तक पहुँचने के ....सब कुछ छोड़ कर .... पूरे मन के साथ तुम्हारे पास आये थे ....पर क्या तुम पूरे मन से मेरे साथ थे ....? नहीं......अगर होते तो दर्द के निशान दीवारों पर इतने गहरे ना दिखते ....रिश्ते.....बबूल के काटों की तरह दंश देते हुए और लहूलुहान करते हुए नहीं दीखते ...!कुछ बंधन ..... अबूझे ही रह जाते है ..... छोड़े हुए मोड ....सिर्फ इन्तजार करते ही रह जाते है ... नहीं जान सके आजतक क्या चाहा था जिंदगी से और क्या मिला .......बहुत सारे प्रश्न है ....और जवाब कहीं नहीं .....तुम जो कभी इन प्रश्नों से गुजरना ...तो एक पल ...ठहरना ....और.........सुनना इन के कोलाहल को ...इनमे दबी चीखें ....और सिसकियाँ ...तुम्हें जरूर सुनायी देंगी..................
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home