Thursday, April 21, 2011


रास्ते जो छूट रहे है....गुम होते ....सायों के बीच ....एक पर्पल फूल......कि आपबीती

टूट........... टूट कर गिर रहें  हैं .... राहों में .....पर्पल रंग के फूल ....लोग लगातार आ..... जा रहे है ....गाडियां एक के बाद एक गुजरती जा रही हैं  ....सब कुछ रफ्तार से भागता जा रहा है ...कोई है जो उन फूलों को  ...  सड़क से उठा कर अपने दामन में भर लेना चाहता  है ......पर  ....उसकी आँखों से लगातार पीड़ा.............  आंसूं बन कर बह रही  है ................................. !  .......
................जाड़ों की नरम गुदगुदाती ...सुबहें...कब की गुम हो  चुकीं है ...और   तपिश भरे दिन  .... रिश्तों को भी झुलसा से गए  है .....हर दिन किसी के हाथों  में हाथ .............लेकर शुरू होने वाली सुबहें गुम गयीं है ....बिखर गया है कुछ .....दरक गया है कोई कांच सा भीतर .....!
कहाँ क्या छूटा.....कैसे छूटा नहीं मालूम ....सहलाती सी  सुबहें .......आज भी लिपट लिपट जातीं हैं ....आप होकर  भी नहीं हो............ और नहीं होकर भी................ हर पल महसूस होते हो
... !  ....... ...............

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