जिंदगी बही जा रही है बेआवाज़.. गूंजती है यादें बीते दिनों की ..ओर बह निकलता है दरिया सा आँखों से कहीं... याद आती है बहुत वो नारंगी सी शामे... कितने रंगीन सपनों के दुशाले मे लिपटी ..हवाओं के साथ लहराती..ओर गीत गाती सी थी..क्या पता था कि ये मन के अंदर गूंजती धुन.....कान्हा की बांसुरी कि तरह बजती नहीं रहेगी....साथ छूट जायेंगे..हाथ छूट जायेंगे ... राग गुम हो जायेंगे ... मेरी अनकहीं सी बातों कि रंगीन चुनरी...आंधियों मे तार..तार.. हो जायेगी ...क्या पता था ...क्या पता था ...
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