Sunday, March 27, 2011

जीवन का एक लंबा पड़ाव गुजर गया ...अब आकर खोने ओर पाने के ...मायने समझाने लगे हो ....इतने दिन कहाँ थे ?सवालों के ढेरों ढेर पुलिंदे...खोल के तुम्हारे सामने बिखरा दिए है ...बताओ कहाँ थे ?जब ..जब रोये कोई कंधा सहारे के लिए नहीं था..... रातों को डर..डर कर तकिये को भींचा ,...तब भी तुम नहीं थे.... आंसुओं में  कितनी रातें सिसक सिसक...गुजारीं तब भी तुम नहीं थे ..सारे रास्तों पर अकेले बंजारों की तरह डोलते रहे ....तुम्हे पुकारते रहे ...पर तुम तो अपनी दुनिया में  खोये थे ...और  मेरी  आवाज़ तम्हे छु ना सकी .... टकरा कर  लौट आयी ....अब कहते हो साथ चलो...ओर कैसा  साथ देने  को कहते हो जिसमे हमेशा ...खुद को हमसे दूर ले जाने के बात करते हो .....बस अब बस भी करो ....अब मान भी जाओ ओर खूब जियो मेरे लिए जियो... मर मर ...कर नहीं मिट ..मिट कर जियो ......हमें जियो हमें चाहो ...हमें पाओ...हमेशा पास रहो ....ओर हमें जिन्दा रहने के रोज नए सपने दो.... मेरे सपनों में रंग बन कर छा जाओ....  क्या  ऐसा नहीं कर सकते हो ?हम जानते है आप  सब कर सकते हो ..

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