Thursday, August 9, 2012

उदासी के समंदर को खंगाल कर ....जो यादें मोती बन ढूलक रहीं है..उनकी बारिश को कलेजे से लगाकर उसे धड़कन में रख लेना..होता है ! बस.....और फिर इसके बाद सब कुछ...है...और कुछ भी नहीं है...................

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