और.....एक और दिन था डूबता हुआ सा ..........!
यादों की एक किताब को सरहाने रखकर ...ना जाने सारा दिन
क्या-क्या बुनते...... उधेड़ते रहे......!
हाथों पर तुमने उँगलियों से जो इबारत लिखी .,...उसके निशान
पक्के हो चले है ....बारिश की बूंदो में भीगने से ....रंग और निखर
आया है .......
ढुलकते जाते हो कभी गालों पर आंसूं बन कर और कभी...होठों पे
ठहरती सी बातों....का एक कारवां बन जाते हो ...................
खामोशियों से भी ज्यादा था वीरान ये दिन.................! सारे गीत
.....कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !................बेबस सी हवा में
तैरती .... सिसकती यादें.......थीं ....... और.....एक और दिन
था डूबता हुआ सा ..........!